advertisment

Wednesday 31 August 2016

शुक्रताल में भ्रमण (2)

महर्षि शुकदेव आश्रम

शुक्रताल में भ्रमण (2)

 हनुमंत धाम के बराबर में ही गणेश धाम है । भगवान गणेश की प्रतिमा 35 फीट ऊंची  है।
 गणेश धाम के दर्शन करके हम महर्षि शुकदेव आश्रम व सुखदेव मंदिर की तरफ चल दिए । जिसका रास्ता गणेश धाम के ठीक सामने से था । 

भगवान गणेश की प्रतिमा 

 हनुमंत धाम के बराबर में ही गणेश धाम


कहा जाता है कि इस जगह पर अभिमन्यु के पुत्र व अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित को महर्षि सुखदेव जी ने भागवत गीता का वर्णन किया था । इसके समीप स्थित वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर का निर्माण किया गया था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर ही सुखदेव जी भागवत गीता के बारे में बताया करते थे। सुखदेव मंदिर के भीतर एक यज्ञशाला भी है।
वट वृक्ष

वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर





मंदिर से निकलने तक 9 बज चुके थे । अब भूख लग रही थी । मंदिर के बाहर ही एक ठीक सा रेस्टोरेंट  नजर आ गया । सीट पकड़ ली , पूछा खाने में क्या है । पता चला सिर्फ आलू के परांठे है । हमारी टीम में एक दो लोग इस मौसम में आलू नहीं खाते । इस लिए हम वहाँ से उठ लिए । और कोई ढंग का रेस्टोरेंट नजर नहीं आया । हम गाड़ी ले कर चल दिए । जरा सा चलते ही हम शुक्रताल के बाहर की तरफ आ गए । फिर एक ने कहा कि घाट के पास कुछ अच्छे रेस्टोरेंट देखे थे । हमने गाड़ी फिर घाट की तरफ मोड़ ली । वहाँ एक अच्छा रेस्टोरेंट नजर आ गया । वहाँ हमें बगैर आलू के आइटम छोले भटूरे और खस्ता छोले भी मिल गए ।


एक अच्छा रेस्टोरेंट

 पेटपूजा करने के बाद एक ही काम बचा था । वापसी का , सो ठीक साढ़े नो बजे हम शुक्रताल से चल दिए । और पूरे 40 मिनट में दस बज कर दस मिनट पर हम घर पहुँच ग

Tuesday 30 August 2016

शुक्रताल में भ्रमण



शुक्रताल में भ्रमण


शुक्रताल मे सबसे पहले हम गंगा जी के घाट पर पहुँचे । हम सोच रहे थे इतनी सुबह घाट खाली मिलेगा । लेकिन नहीं वहाँ काफी भीड़ थी । 


वहाँ गंगा के पानी में मछलियां बहुत हैं । घाट पर ही दुकानदार आटे की गोलियां बना कर बेचते है । जिन्हें आप मछलियों को खिला सकते है । हमने भी खिलाई । जैसे ही आटे की गोलिया पानी में जाती मछलियां लपक कर उसे ले कर भाग जाती । फिर मैं पानी में पैर दे कर खड़ा हो गया । मछलियां मेरे पैरों को खाना समझ कर कुतरने की कोशिश कर रही थी । बड़ा मजा आ रहा था । कभी कभी तो इतनी तेज गुदगुदी होती की पैर पानी से निकलना पड़ता । ऋषभ ने बताया कि साऊथ में फिश स्पा होता है । जिसमे आपके पैर मछलियों से भरे पानी के टब में रखवा देते है । मछलियां आपके पैर की डेड स्किन खा जाती है। फिश स्पा के 50 रु चार्ज किये जाते है । यहाँ हमने फ्री में फिश स्पा का मजा ले लिया । अब घाट से बाहर आये ।
ओरिजनल टैंक

कारगिल वार स्मारक झाकिया

कारगिल वार स्मारक झाकिया

कारगिल वार स्मारक

देखा एक बोर्ड लगा था जिसमे एक तरफ शिव धाम और दुर्गा मंदिर व कारगिल शहीद स्मारक और दूसरी तरफ हनुमत धाम व नक्षत्र वाटिका थी । पहले हम शिव मंदिर की तरफ चले । चलते ही कारगिल वार स्मारक आ गया । स्मारक का मेन रूम बंद था बाकि एक दो झाकिया बना रखी थी वो देखी । सामने ही एक टैंक रक्खा हुआ था । बच्चे वो ओरिजनल टैंक देख कर बड़े खुश हुए । 
शिव धाम

शिव धाम बच्चे पूजा कर रहे है

शिव धाम मंदिर

 फिर आगे शिव धाम की तरफ बढ़ गए । शिव धाम एक अच्छा मंदिर बना हुआ है । मंदिर के प्रांगण में वही रहने वाले कुछ बच्चे पूजा कर रहे थे ।
हनुमत धाम

हनुमत धाम में हम
हनुमत धाम मंदिर


 दर्शन करके हम फिर घाट के सामने से होते हुए हनुमत धाम पहुँच गए । हनुमंत धाम में हनुमान जी की 72 फ़ीट ऊँची मूर्ति है । जो शुक्रताल का मुख्य आकर्षण है । मंदिर प्रांगण से ही एक रास्ता पीछे की तरफ निकलता है । जहाँ नक्षत्र वाटिका है ।

नक्षत्र वाटिका




एक दुर्लभ वृक्ष 

कल्प वृक्ष एक दुर्लभ वृक्ष 


 खूबसूरत मूर्तियां 

 खूबसूरत  

खूबसूरत मूर्तियां 

जानवरो की मूर्तियां 

बड़ी बड़ी खूबसूरत मूर्तियां 




 बच्चे नक्षत्र वाटिका में पहुच कर बहुत खुश हुए । वहाँ जानवरो की बड़ी बड़ी खूबसूरत मूर्तियां बनाई हुई है । साथ ही नक्षत्र वाटिका में एक कल्प वृक्ष भी है जो एक दुर्लभ वृक्ष माना जाता है । नक्षत्र वाटिका से हम वापस हनुमंत धाम आ गए ।

 हनुमंत धाम के बराबर में ही गणेश धाम है । भगवान गणेश की प्रतिमा 35 फीट ऊंची  है।

शुक्रताल



शुक्रताल का सफर

शुक्रताल का सफर

कल रात 9 बजे ऋषभ घर हमारे घर आया । कहने लगा परसों सुबह मै निकल जाऊँगा । कल संडे है , कही घूमने चलते है । मैंने कहा एक दिन में कहाँ जा सकते है । तो वो कहने लगा शुक्रताल चलते है । शुक्रताल हमारे मुज़फ्फरनगर से ३० किमी है । लेकिन हम लोग दूर दूर तो घूम आते है ।पास में लगता है यहाँ तो कभी भी हो आएंगे । इसलिए जा नहीं पाते । शुक्रताल गए हुए मुझे 15 साल हो गए होंगे फिर भी पता नहीं क्यों मेरा मन नहीं हो रहा था । लेकिन सब की इच्छा थी । मैंने पुलकित की क्लासेज का हवाला दिया । तो वो बोला कल मेरी क्लासेज 11 बजे से है । लेकिन जाने का मन उसका भी था । वो पहले कभी नहीं गया था । तो प्रोग्राम बना की सुबह 6 बजे निकलते है । और 11 बजे तक वापस आ जायेंगे । बात करते करते रात 11 बज गए । फिर ऋषभ चला गया कि सुबह हम आ रहे है , सुबह 6 बजे तैयार रहना । मै तो आराम से सो गया । अचानक अलार्म की आवाज सुनी । नींद खुल गई , ध्यान आया की शुक्रताल जाना है । टाइम देखा 5:30 हो रहे थे । श्रीमती जी तैयार होने जा चुकी थी । इसका मतलब ये अलार्म मेरे लिये लगाया गया था । क्याकि हमारे बच्चे तो ड्रम भी बजा लो तो भी न उठें । जब तक उन्हें हिला हिला कर ना उठाओ । तो मैं अलार्म सुन कर उठ गया । और तैयार होने चला गया । इतनी देर में श्रीमती जी ने दोनों बच्चों को उठा दिया ।वो भी तैयार हो गए । इतनी देर में ऋषभ का फ़ोन आ गया कि हम आपके घर के बाहर आ गए । जितनी देर में हमने तैयार होने में फाइनल टच दिया । ऋषभ ने हमारी गाड़ी भी बाहर निकाल दी । ठीक सवा छः बजे हम 2 गाड़ियों में 8 बड़े और 2 बच्चे सवार हो कर शुक्रताल चल दिए ।
यह स्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। गंगा नदी के तट पर स्थित शुक्रताल मुज़फ्फरनगर से 30 किमी दूर है । यह गंगा के किनारे बसा है | जहाँ देश विदेश से लाखों पर्यटक प्रति वर्ष आते है |
शुक्रताल चल दिए


घर से निकल कर जानसठ रोड होते हुए बाईपास पकड़ लिया और भोपा रोड होते हुए सीधे शुक्रताल पहुँच गए ।


शुक्रताल मे सबसे पहले हम गंगा जी के घाट पर पहुँचे । हम सोच रहे थे इतनी सुबह घाट खाली मिलेगा । लेकिन नहीं , वहाँ काफी भीड़ थी ।
शुक्रताल गंगा घाट

शुक्रताल घाट

शुक्रताल घाट पर हम

शुक्रताल गंगा घाट


Tuesday 23 August 2016




भीमताल से वापसी


भीमताल से वापसी

नैनीताल से काळाडूंगी और भीमताल बिलकुल विपरीत दिशा मे है । इसलिए वहाँ से काळाडूंगी जाने का कोई औचित्य नहीं था । हमने वाया हल्द्वानी जाने का फैसला किया । यहाँ से काठगोदाम 10 कि0मी0 है । हम काठगोदाम होते हुए हल्द्वानी पहुँच गए । जो काठगोदाम से 18 कि0 मी0 है । 


मुझे पता नहीं था हल्द्वानी इतना बड़ा शहर है । मैं तो इसे छोटा मोटा शहर समझता था । शहर मे चलते हुए एक मॉल दिखाई दिया । बस सारे मॉल में घूमने को कहने लगे । ड्राइवर ने यानी मैंने फ़ौरन आदेश का पालन किया । सब लोग मॉल में चले गए । मैंने गाड़ी बेसमेंट में पार्किंग में लगाई और ऊपर मॉल में आ गया । यहाँ सबसे पहले काशीपुर का रास्ता पूछा ।    हमारा इस रास्ते से आने का कोई प्रोग्राम नहीं था । इसलिए नेट से इस रास्ते की कोई जानकारी नहीं ली थी । इसलिए जरूरी था कि सही रास्ते की जानकारी ले ली जाये । एक समझदार व्यक्ति मिल गया । उसने बताया कि आप रुद्रपुर होते हुए जाओ । ये रास्ता सबसे छोटा है । उसने ये भी बताया कि अगले चौराहे से सीधे हाथ मुड़ कर थोडा आगे जा कर उल्टे हाथ मुड़ जाना । यही सबसे छोटा रास्ता रहेगा । लगभग 1 घंटे वहाँ रुक कर हम फिर वापसी के लिए चल दिए । अब लगभग 1 बज रहा था ।
अब हम रुद्रपुर के लिए चल दिए । चौराहों पर रास्ता कंफर्म करते रहे । ताकि गलत रास्ते पर न चले जाये । रुद्र पुर करीब 35 कि0मी0 पड़ा । रुद्रपुर से सीधे हाथ काशीपुर के लिए मुड़ गए । रुद्रपुर पार करके सबको भूख लगने लगी थी । एक रेस्टोरेंट पर गाड़ी रोक ली । और एक टेबल पकड़ ली । हमारे बराबर में एक दूसरा परिवार बैठा था । वो नॉनवेज खा रहा था । हमारे घरवालों ने वहाँ खाने से मना कर दिया । हम उठ कर चल दिए । आगे मुझे हिदायत मिली की गाड़ी वही रोकना जहाँ सिर्फ वेज खाना मिलता हो । हमने कई रेस्टोरेंट और ढाबो पर पूछा पर सब जगह नॉनवेज मिल रहा था । ये इलाका पंजाबी बाहुल्य है । और वो नॉनवेज खाते है । हमें चलते चलते और पूछते पूछते 3 बज गए । लेकिन हमें जिद थी की वेज ढाबे में ही खाना है । तभी एक छोटा सा ढाबा नजर आया । मैं नाउम्मीद था फिर भी मैंने अपने बड़े बेटे पुलकित को पूछने भेज दिया । उसने जा कर पूछा "अंकल खाने में नॉन वेज है " । ढाबे वाले ने उसे घूर कर देखा और गुस्से में बोला "नहीं , यहाँ सिर्फ शाकाहारी मिलता है" । पुलकित वही से हमारी तरफ देख कर चिल्लाया " आ जाओ" । मैने गाड़ी साइड मे लगा दी और हम सब उतर कर उसके ढाबे में पहुच गए । वो अभी भी हमें संशय भरी नजरों से देख रहा था । हम बैठ गए । दाल , रोटी , और सब्जी का आर्डर दिया । अब ढाबे के मालिक की जान में जान आयी । पता नहीं खाना बहुत अच्छा था या हमें भूख बहुत ज्यादा लगी थी , सब ने खूब जम कर खाया । 4 बजे हम वहाँ से चले अब हमें कोई जल्दी नहीं थी । हमारा लक्ष्य सिर्फ मुज़फ्फरनगर था । जसपुर पहुच कर फिर वही समस्या आई की बीजनोर जाने के दो रास्ते थे । इस बार हमने ठोक बजा कर बीजनोर का छोटा रास्ता पूछा । अब हम धामपुर वाले रास्ते से बीजनोर पहुच गए । लगभग 7 बजे हम बिजनोर पार कर गए । ये अच्छा ही रहा क्यंकि बिजनोर जो खादर का इलाका कहलाता है । हम दिन में ही पार कर गए । और 8 बजे आराम से अपने घर पहुँच गए ।

इस तरह नैनीताल की एक ख़ूबसूरत यात्रा समाप्त हुई ।




Sunday 21 August 2016

भीमताल

भीमताल


अगले दिन हम सुबह 7 बजे सो कर उठ गए । जो जल्दी सो कर उठा वो वो पहले बाथरूम का इस्तेमाल करके तैयार हो गया । जब तक बच्चे तैयार हुए हमने होटल में ही नास्ते के लिए बोल दिया । होटल में ही एक फ्लोर ऊपर छोटा सा डाइनिंग रूम बनाया हुआ था , जिसमे 2 सेंटर टेबल और कुर्सियां पड़ी थी । सामने दीवार की जगह पूरे में शीशे की खिड़कियां थी । जिनसे नैनी झील साफ नजर आती थी । वहाँ आलू के पराठों का नाश्ता करके मजा आ गया । हम 9 बजे होटल से चेकआउट कर गए । हमे कोई जल्दी नहीं थी । गाड़ी से आराम आराम से नैनी झील के किनारे किनारे चलते रहे । आगे जा कर एक चौराहा आया । वहाँ से उल्टे हाथ भीम ताल की तरफ मुड़ जाते है । सीधे हाथ सड़क नैनी झील के किनारे किनारे चली जाती है । हम सीधे हाथ चल दिए । 100 मीटर आगे जा कर एक बरियर लगा था । वहाँ के चौकीदार ने हमें आगे जाने से मना कर दिया ।शायद यह कोई वी आई पी एरिया था । हम गाड़ी बैक करने लगे । तो चौकीदार ने बड़े प्यार से आगे से बैक करने को बोल कर आगे जाने दिया । हम गाड़ी बैक कर भीमताल की तरफ चल दिये ।नैनीताल से भीमताल की दूरी 23 कि0 मी0 है।
भीमताल बोटिंग

  नैनीताल जिले में जगह-जगह पर कई सारी झीलें है, जिनमें भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल काफी प्रसिद्ध है। भीमताल झील समुद्र तल से 1200 मीटर ऊंचाई पर स्तिथ है । इस झील के बीच एक छोटे से टापू ने इस झील के सौंदर्य में चार चाँद लगा दिए है । इसमें बोटिंग का भी अपना मजा है । नावों से टापू में पहुँचने का प्रबन्ध है।
झील के बीच एक टापू


मछली घर

 मत्स्य विभाग ने इस टापू पर एक मछली घर बना दिया है । जो देखने लायक है । भीमताल वास्तव में बहुत ही सुंदर झील है । नैनीताल की तरह इसके भी दो कोने हैं जिन्हें तल्ली ताल और मल्ली ताल कहते हैं। यह भी दोनों कोनों सड़कों से जुड़ा हुआ है। परंतु यह नैनीताल की तरह विकसित नहीं है । इसलिए यहाँ एक या दो घंटे बाद बोरियत होने लगती है । 2 घंटे बाद हम भी वहाँ से चल दिए ।