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Wednesday, 7 September 2016

कुल्लू मनाली , शिमला यात्रा




नमस्कार मित्रों

अपने मेरी पिछली पोस्ट्स में मेरी नैनीताल यात्रा के विषय में पढ़ा था । अब में अपनी एक अन्य रोचक यात्रा जो की कुल्लू मनाली , शिमला की है के विषय में लिख रहा हूँ ।

कुल्लू मनाली , शिमला यात्रा की तैयारी


जैसा की में पहले भी लिख चुका हूँ की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सावन के माह में एक विशेष त्यौहार होता है सावन शिवरात्रि , जिसमें श्रद्धालु हरिद्वार से गंगा जल ले कर चलते है । इस दौरान हरिद्वार से मेरठ तक पूरा मार्ग हेवी ट्रेफिक व गाड़ियों के लिए बंद रहता है । ये समय हमारे लिए घूमने जाने का आदर्श समय होता है । जैसे कावड़ के दौरान नैनीताल यात्रा की गई थी । इसी प्रकार अगली कावड़ के दौरान हमारा प्रोग्राम कुल्लू मनाली , शिमला का बन गया । लेकिन इस बार यात्रा की तैयारी पहले से की गई थी । यह यात्रा लगभग तीन साल पहले की गई थी ।
इस बार यात्रा में मै ,मेरा परिवार (माता जी , धर्मपत्नी , बड़ा बेटा पुलकित , छोटा बेटा विदित , हमारे साले साहब मनीष , उनकी पत्नी , छोटा साला ऋषभ जो मनिपाल में पढ़ रहा है छुट्टियों में आया हुआ था । कुल जमा 8 लोग हो गए थे । अपनी गाड़ी से जाना संभव नहीं था । इसलिए एक बड़ी गाड़ी स्कार्पियो कर ली । इसी गाड़ी से हम इससे पहले अपने चचेरे भाई के साथ जयपुर का टूर कर चुके थे । इसलिए हमें गाड़ी और ड्राइवर पर भरोसा था । सफर में साथी अगर अच्छे हों तो सफर का मजा कई गुना हो जाता है । उसमें गाड़ी और ड्राइवर भी शामिल होता है ।
हमारा यात्रा वाहन

हमारा यात्रा वाहन



 हमने गाडी तय कर ली । और नियत तारीख में सुबह 5 बजे आने के लिए बोल दिया । ड्राइवर का मोबाइल नं0 हमारे पास पहले से था । जिस दिन हमें जाना था उससे एक दिन पहले ड्राइवर का फ़ोन आया कि उसे अचानक दूसरी गाड़ी पर जाना पड़ रहा है। । इसलिए मैं आपके साथ नहीं चल पाउंगा । अपनी जगह मै उसी गाड़ी पर दूसरा ड्राइवर भेज रहा हूँ । मुझे कुछ संशय हुआ । तो उसने आस्वाशन दिया कि हर तरह की जिम्मेदारी मेरी है । वो आदमी बहुत अच्छा है । अब हमारे पास समय भी नहीं था । अगले दिन सुबह निकलना था । हमने कहा भेज भई ।
अगले दिन सुबह 5 बजे गाड़ी हमारे घर पर आ गई । हमने अपना सामान गाड़ी में रख लिया । मनीष को फ़ोन कर दिया हम चल दिए , बस 5 मिनट में तुम्हारे यहाँ पहुच जायेंगे ।हम पटेल नगर चल दिए अपनी बाकी सवारियों को लेने । 5 मिनट में ही हम उनके घर पहुँच गए । अब उन्होंने अपना सामान रखना शुरू किया । स्कॉर्पियो की डिक्की बहुत छोटी होती है । 2 बैग और 2 छोटी अटैची बड़ी मुश्किल से एडजेस्ट किये । बाकि सामान सबसे पिछली सीट पर एक कोने पर एडजेस्ट किया । उनके सामान में 2 खाने के बड़े बड़े बैग भी थे । जिनमे सूखा नाश्ता जैसे मठरी , बिस्किट , नमकीन , अचार इत्यादि थे । अब बैठने की बारी थी । दो लोग पीछे , महिलाएं और पुलकित कुल 4 लोग बीच में , ऋषभ सबसे आगे बैठ गए ।

सफर शुरू हुआ 


अब फाइनली साढ़े पांच बजे हम मनाली के लिए चल दिए । निकलते ही सियाप्पा होते होते बचा । मुज़फ्फरनगर शामली मार्ग भी कावड़ यात्रा के लिए बंद था । लेकिन सुबह सुबह का समय होने के कारण सख्ती ज्यादा नहीं थी । ड्राइवर ने पुलिस वालो से अनुरोध किया कि हमें चरथावल जाना है । जहाँ जाने के लिए लगभग 500 मी0 आगे से रास्ता कटता है । पुलिस ने हमें जाने दिया । बच गए , वरना बहुत लंबा चक्कर लगा कर गांवो के रास्ते जाना पड़ता । हम वाया चरथावल थानाभवन शामली जाने को तैयार थे । ये रास्ता ज्यादा लंबा नहीं है । और अच्छा बना है । हम चरथावल रोड पर आराम से पहुच गए । अब कोई समस्या नहीं थी । सुबह का समय था बीच में पड़ने वाले कस्बों और गांवों की सड़के खाली पड़ी थी । ड्राइवर बहुत बढ़िया था । हम सात बजे शामली पार कर गए । शामली से करनाल का रास्ता खुला हुआ था । लेकिन बहुत ज्यादा ख़राब हालात में था । ड्राइवर ने बताया कि ये रास्ता 4 लेन पास हो गया है । जो पूरी तोड़ कर दोबारा बनाया जायेगा । इसलिए सरकार इसपर पैसे खर्च नहीं कर रही है । 


पुलकित महाशय

छोटा बेटा विदित

मैं , विदित

छोटा बेटा विदित






मेरा परिवार

शामली से करनाल लगभग 45 कि मी है । जिसे पार करने में 2 घंटे लग गए । अब हम नेशनल हाइवे पर आ गए । अब उम्मीद थी सड़क बढ़िया मिलेगी । सड़क तो बढ़िया थी पर हर 15 - 20 कि मी पर लगभग हर रोड़ क्रासिंग पर फ्लाई ओवर का निर्माण हो रहा था । जिसके कारण रुट साइड की सर्विस लेन पे ट्रांसफर किया हुआ था । करनाल से निकलते ही एक जिप्सी का सायरन सुनाई दिया । हमने साइड दे दी । जिप्सी तेज स्पीड पर हमसे आगे निकली , उसके पीछे एक बस उसी स्पीड पे उसके पीछे चल रही थी । उस बस के पीछे फिर एक जिप्सी थी । यानी वो कोई वी आई पी बस थी । ड्राइवर ने बताया वो । वो समझौता एक्स0 बस थी जो दिल्ली से लाहौर पाकिस्तान के लिए चलती है । रोज सुबह यहाँ से गुजरती है । मैंने कहा इस बस के पीछे लगा लो । तो ड्राइवर बोला कोई फायदा नहीं ,ये बस थोड़ा आगे जा कर ब्रेकफास्ट के लिए एक रेस्टोरेंट पर रुक जाएगी । बस आगे निकल गई । हम अपनी चाल से आगे बढ़ते रहे । 5 मिनट बाद ही वो बस एक रेस्टोरेंट पर अंदर खड़ी दिखी । हम आगे बढ़ते रहे । 9 बज रहे थे । भूख लगने लगी थी । ड्राइवर से कहा अम्बाला पार करके किसी ढाबे पर रोक देना । उसने अम्बाला पार करके एक अच्छे से ढाबे पर गाड़ी रोक दी ।
अम्बाला से आगे ढाबे पर

ढाबे पर

नाश्ते का इंतजार

नाश्ते का प्रोग्राम

मजा आ गया



 ड्राइवर फ़ोन पर बात करने लगा । हमने आलू के पराठों का आर्डर दे दिया । लगभग 15 मिनट लगे खाना आने में । जब तक खाना आया वो फ़ोन पर ही बात करता रहा । आधा घंटे में पेट पूजा करके हम फिर गाड़ी में बैठ लिए । अब ड्राइवर ने गाड़ी उलटी अम्बाला की तरफ घुमा ली । ऋषभ ने उससे पूछा तो वो बोला हम गलत रास्ते पर आ गए है , मनाली का रास्ता अम्बाला से दूसरी तरफ कटता है ।

 मैं सोच में पड़ गया , क्योंकि जब 20 साल पहले मैं गया था तो वाया चंडीगढ़ ही गया था । मैंने नेट पर सर्च मारना शुरू किया । नेट ने दोनों तरफ से रास्ता दिखाया , अम्बाला चंडीगढ़ बड्डी होते हुए , दूसरा अम्बाला खरर रूपनगर होते हुए । मेरे मोबाइल में 2 जी नेट था । जब तक मेरे फोन ने सर्च किया हम अम्बाला तक आ चुके थे । इसलिए मैंने बात आगे बढ़ानी सही नहीं समझी । अब उसने गाड़ी अम्बाला से दूसरी सड़क पर ले ली । यहाँ से रूपनगर 75 कि मी था । अब मैं आराम से मोबाइल में गेम खेलने लगा । हालांकि मैं अपने मोबाइल में गेम नहीं रखता । क्योंकि बच्चे फोन नहीं छोड़ते और जब अपने को फ़ोन की जरुरत हो तो बैटरी डाउन मिलती है । लेकिन ये फ्री टाइम था । कुछ देर खेलते ही छोटे बेटे ने देख लिया । और मेरे हाथ से फ़ोन छीन लिया और खुद खेलने लगा । दो डायलॉग और चिपका दिए की हमें तो मना करते हो खुद खेल रहे हो । अब फ़ोन छिन गया तो बाहर के नज़ारे देखने लगा । हम रोपड़ शहर में घुस रहे थे । जगह जगह दुकानों पर रोपड़ लिखा नजर आने लगा । अचानक दिमाग चकराया रोपड़ , ये रोपड़ कहाँ से आ गया । लगता है फिर गलत रास्ते पर आ गए । बेटे से अपना फोन लिया । फिर गूगल मैप पर रास्ता चेक किया । इस रास्ते में तो कही रोपड़ है ही नहीं । हम कहाँ पहुच गए । मैंने जीपीएस ऑन किया । और अपनी पोजीशन चेक की । फिर दिमाग चकरा गया । जीपीएस हमारी लोकेशन रूपनगर में दिखा रहा था । फिर बाहर देखा दुकानों पर रोपड़ लिखा था । विकिपीडिआ की मदद ली तो समझ आया । गवर्नमेंट इसे जिला रूपनगर कहती है । परंतु आम बोलचाल में इसे रोपड़ कहते है । इसलिए दुकानों पर रोपड़ ही लिखा मिलता है । जबकि नेट पर रूपनगर । सड़क बहुत बढ़िया बनी थी । आखिर टोल रोड थी । टोल भी कितना 20 रु । जबकि हमारे यहाँ मुज़फ्फरनगर से दिल्ली जाते हुए टोल लगता है 80 रु । और आने जाने का टिकट मांग लो तो देते नहीं है । खैर हम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे 




रूप नगर से आगे
सड़क बहुत बढ़िया बनी थी
रूप नगर से आगे
पूरा ग्रुप
पूरा ग्रुप
ऋषभ 
मनीष व पुलकित  

मैं और धर्मपत्नी जी  
रूप नगर से आगे
रूप नगर से आगे
पुलकित 
माता जी   
बहुत बढ़िया सड़क 

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