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रास्ते के सुन्दर दृश्य |
नैनीताल
का सफर
नैनीताल
का रास्ता मुज़फ्फरनगर से बिजनोर हो कर है । जो हमारे घर से लगभग 50 कि0 मी0 पड़ता है
। लेकिन बिजनोर का एरिया खादर का एरिया कहलाता है । जहाँ रात को जाना सुरक्षित नहीं
माना जाता । इसलिए हमें घर से निकलने की कोई जल्दी नहीं थी । हम सुबह 7 बजे घर से चले
। 8 बजे के लगभग हम बिजनोर पहुँच गए । इस समय तक मुज़फ्फरनगर बिजनोर के बीच ट्रेफिक
शुरू हो जाता है इसलिए डर वाली कोई बात नहीं थी । बिजनोर पहुँच कर हमने एक सज्जन से
काशीपुर का रास्ता पूछा । यहाँ एक गडबड हो गई । बिजनोर से काशीपुर दो रास्ते जाते है
एक धामपुर जसपुर होते हुये काशीपुर , दूसरा नगीना अफजलगढ़ जसपुर होते हुए काशीपुर ।
उन सज्जन ने हमें नगीना वाला रास्ता बता दिया और हम नगीना की तरफ चल पड़े । लगभग 10
कि0 मि0 आगे जा कर फिर रास्ता पूछा तो सही बात पता चली । लेकिन अब वापसी जाने का कोई
फायदा नहीं था । इसलिए इसी रास्ते से आगे बढ़ गए । नगीना के रास्ते काशीपुर लगभग 98
कि0 मी0 पड़ता है जो धामपुर के रास्ते 7 -8 क़ि0 मी0 फालतू है । रास्ते में भूख लगी तो
गाड़ी में चलते चलते ही बिस्किट नमकीन और चिप्स खा लिए । लेकिन इन चीजों से पेट तो नहीं
भरता । लगभग साढ़े दस बजे हम काशीपुर पार कर गये । अब नैनीताल 83 कि0 मी0 रह गया था
। लेकिन सबको भूख लगने लगी थी । काशीपुर से लगभग 10 कि0 मि0 आगे एक ढाबा पड़ा , गाड़ी
वहीं रोक दी । नास्ते में आलू के पराँठे माँगा लिए । ये ढाबा कम रोड साइड ओपन रेस्टोरेंट
ज्यादा था जो काफी बड़ी जगह में बनाया गया था । ढाबे के पीछे बहुत खेती की जमीन थी जहाँ
जाने के लिए ढाबे में से ही एक गेट बनाया हुआ था । ढाबे के बराबर में कोई बड़ा सा प्लांट
था । पूछने पर पता चला ये चीमा पेपर मिल है । मैं ये बात इतने विस्तार से इसलिये बता
रहा हूँ क्योंकि मैंने चीमा परिवार के बारे में पढ़ा है । ये परिवार पार्टीशन के समय
पाकिस्तान से आया था । इनके पास कुछ नहीं था । इस इलाके में पूरी तरह जंगल था । इन्होंने
मेहनत करके अपने रहने व खेती की जगह बना ली । कुछ समय बाद उस इलाके के कमिश्नर वहाँ
हाथी पर दौरा करने निकले । वो चीमा परिवार की मेहनत देखकर बहुत खुश हुए । उन्होंने
चीमा परिवार के मुखिया से कहा कि तुम इस इलाके का जितना जंगल साफ कर सकते हो वो ज़मीन
तुम्हारी हो जायेगी । उन लोगो ने बहुत मेहनत की और काफी बड़े भूभाग से जंगल साफ कर दिया
। कमिश्नर ने अपना वादा निभाया । वो सारी जमीन चीमा परिवार के नाम कर दी । आज भी इस
इलाके में चीमा परिवार के लोग बहुतायत में रहते है । बातों बातों में ये भी पता चला
की उस रेस्टोरेंट का मालिक भी चीमा परिवार से ही है ।
हम
हेवी नाश्ता करके लगभग साढ़े ग्यारह बजे हम अपने रास्ते चल दिए । इसके आगे का रास्ता
काफी अच्छा था । लगभग 10 - 12 कि0 मी0 चलकर एक चौराहा आया । जहां से सामने रुद्रपुर
, सीधे हाथ मुरादाबाद और उल्टे हाथ कालाडूंगी की तरफ चला जाता है ।सो हम उल्टे हाथ
मुड़ गये । अब सड़क बिलकुल खाली थी । लेकिन सड़क सीधी होने के बावजूद सड़क पर चढ़ाई थी ।
जिसकी वजह से गाड़ी बहुत तेज नहीं चल रही थी । लगभग 22 कि0 मी0 चलकर कालाडूंगी आ गया
। यहाँ से नैनीताल के लिए पहाड़ी रास्ता शुरू होता है । जो लगभग 35 कि0मी0 का है । लेकिन
सड़क पर ट्रेफिक बिलकुल नहीं था । रास्ते में सुन्दर सुन्दर पहाड़ी सीन दिखने शुरू हो
गए । सब लोग गाड़ी रोकने की जिद करने लगे । गाडी से उतर कर कुछ देर मजे किये । फिर चल
दिए अपने गंतव्य की ओर । रुकते रुकाते लगभग 3 बजे हम नैनीताल पहुँच गए ।
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रास्ते
के सुन्दर दृश्य
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नैनीताल वाया काळाडूंगी
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बरसात का मौसम
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बादलों
का दृश्य
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रास्ते के सुन्दर दृश्य
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नैनीताल के रास्ते वाया काळाडूंगी
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नैनीताल के रास्ते |
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नैनीताल वाया काळाडूंगी |
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बरसात का मौसम था |
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नैनीताल के रास्ते के सुन्दर दृश्य |
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